Friday, June 20, 2008

'दुदबोलि' बटि कुछ कविता आजि... लेखक छन श्री ज्ञान पन्त ज्यू... हमार जस पहाड़ छोड़ि -छाड़ि आइनाक 'प्रवासी" ना क दिल कि बात गज्बै लेख राखी...

दै मोटरा S S S S S!

त्यार् ख्वार् बज्जर पड़ि जौ

घर बटि लखनौ त

नजीक बँणै देछ, मगर

लखनौ बटि घर

त्वीलि कत्थप पुजै देछ

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कौ सुवा - के हाल छन्

कस मानी रौ पिंजाड़ भितेर?

के हाल बतूँ भुला

आपणैं जस समझ ल्हे!

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डबल - बैड.......!

म्यार लिजि त

यैक मतलब

आजि लै 'डबलै' भै..

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सचिन......!

त्वीलि कमाल करौ यार

यां त ‘हाफ सेंचुरी’ मैंयी

गाव्-गाव् ए गे!

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पहाड़ में

जिन्दगी छ!

शहरन् में

जिन्दगी ' पहाड़ ' छ!

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Thursday, June 19, 2008


दुदबोलि-2006 से साभारलेखक- श्री बहादुर बोरा ग्राम गढतिर, बेरीनाग (पिथौरागढ)

तोss र गाड़ाक ढीक बै, पूss र डानाक अदम तक

फैंली म्यार गौंक, गाड खेत

क्वै चौड चकाल, क्वै चार हात एक बैत

आहा कस अनौख लागनीं?

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ग्यौं, जौं, सरच्यंक

पुडांडमडुवा, इजर, धानाक स्यार

कै में भट-

गहतकैमें चिण-गन्यार

अहा! कस रंग-बिरंग छाजनीं?

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किल्ल-महलाक जास,

खुटकण, शिवज्यू मन्दिराक जास सीढि

काला क दिन बै कायमखानदान जास पीढि-दर-पीढि!

अहा! देख बेरि मन में स्वीण जामनीं!!

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लेकिन यो खालि खेतै न्हैतिना

यो स्मारक छ, यादगार छन!

एक-एक कांध मेहनत कि

काथऔर संघर्षकि व्याथा बाँचनी!

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तोss र गाड़ाक ढीक बै, पूss र डानाक अदम तक

फैंलीम्यार गौंक गाड खेत

आहा कस अनौख लागनीं?